Maths | Number System
गणित में संख्या पद्धति, संख्याओं को लिखने और उनके नामकरण के सुव्यवस्थित नियमों को कहते हैं। इसके लिये निर्धारित प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है जिनकी संख्या निश्चित एवं सीमित होती है। इन प्रतीकों को विविध प्रकार से व्यस्थित करके भिन्न-भिन्न संख्याएँ निरूपित की जाती हैं।
संख्या पद्धति के दो मुख्य भाग होते हैं:-
● आधार (Base): आधार वह संख्या है जिस पर संख्या प्रणाली आधारित होती है। दशमलव संख्या प्रणाली का आधार 10 है, क्योंकि इसमें 10 अंक होते हैं: 0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, और 9।
● प्रतीक (Digits): प्रतीक वे अंक या चिह्न हैं जिनका प्रयोग संख्याओं को लिखने के लिए किया जाता है। दशमलव संख्या प्रणाली में, प्रतीक 0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, और 9 हैं।
संख्या पद्धति के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-
● संख्याओं को लिखने का एक सुव्यवस्थित तरीका प्रदान करना।
● संख्याओं को आसानी से पढ़ना और समझना।
● संख्याओं के बीच संबंधों को स्पष्ट करना।
संख्या पद्धति के मुख्य रूप से चार प्रकार हैं !
दशमलव संख्या पद्धति (Decimal Number System) वह संख्या पद्धति है जिसमें गिनती/गणना के लिये कुल दस अंकों या 'दस संकेतों' (0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9) का सहारा लिया जाता है। यह मानव द्वारा सर्वाधिक प्रयुक्त संख्यापद्धति है। उदाहरण के लिये 645.7 दशमलव पद्धति में लिखी एक संख्या है।
दशमलव संख्या पद्धति में, प्रत्येक अंक एक विशिष्ट मान रखता है जो उसके स्थान पर निर्भर करता है। सबसे दाहिने अंक को इकाई स्थान कहा जाता है, उसके बगल वाले अंक को दहाई स्थान कहा जाता है, और इसी तरह। उदाहरण के लिए, संख्या 645.7 में, 6 इकाई स्थान पर, 4 दहाई स्थान पर, 5 सैकड़ा स्थान पर, और 7 दशमलव स्थान पर है।
दशमलव संख्या पद्धति के कुछ नियम निम्नलिखित हैं:
● शून्य को दाईं ओर से शुरू करके लिखा जाता है।
● एक से लेकर नौ तक के अंकों को दाईं ओर से बायीं ओर लिखा जाता है।
● एक ही स्थान पर दो या दो से अधिक अंक नहीं लिखे जा सकते हैं।
● यदि किसी स्थान पर अंक नहीं है, तो उस स्थान पर शून्य लिखा जाता है।
दशमलव संख्या पद्धति के कुछ लाभ निम्नलिखित हैं:-
● यह एक सरल और समझने में आसान संख्या पद्धति है।
● यह एक स्थानिक संख्या पद्धति है, जो इसे संख्याओं को आसानी से पढ़ने और समझने में मदद करती है।
● यह एक शक्तिशाली संख्या पद्धति है जो गणना और विश्लेषण के लिए उपयोग की जा सकती है।
दशमलव संख्या पद्धति का उपयोग दुनिया भर में किया जाता है। यह गणित, विज्ञान, इंजीनियरिंग, और व्यवसाय सहित विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग की जाती है।
दशमलव संख्या पद्धति में, संख्याओं को लिखने के लिए कुछ विशेष नियम हैं। उदाहरण के लिए, इकाई स्थान पर आने वाले अंकों को उनके नाम से बोला जाता है, दहाई स्थान पर आने वाले अंकों को "दह" के साथ जोड़कर बोला जाता है, सैकड़ा स्थान पर आने वाले अंकों को "सौ" के साथ जोड़कर बोला जाता है, और इसी तरह।
दशमलव संख्या पद्धति एक शक्तिशाली और बहुमुखी संख्या पद्धति है जो गणित के विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग की जाती है। यह एक प्राचीन और परिष्कृत संख्या पद्धति है जो आज भी उपयोग में है।
यहां दशमलव संख्या पद्धति के कुछ उदाहरण दिए गए हैं:-
● 100: सौ
● 234: दो सौ तीस चार
● 567.89: पाँच सौ छहत्तर सात दशमलव आठ नौ
● 0.000001: एक लाखवाँ
● 1,234,567,890: एक अरब दो करोड़ तीस चार लाख पाँच सौ छहत्तर सात हजार आठ सौ नब्बे
दशमलव संख्या पद्धति के कुछ अनुप्रयोग निम्नलिखित हैं:-
● गणना
● माप
● पैसे का हिसाब
● विज्ञान
● इंजीनियरिंग
● व्यवसाय
दशमलव संख्या पद्धति एक महत्वपूर्ण संख्या पद्धति है जिसे गणित और विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है। यह एक सरल और समझने में आसान संख्या पद्धति है जो गणना और विश्लेषण के लिए शक्तिशाली है।
द्विआधारी संख्या पद्धति (Binary Number System) एक ऐसी संख्या पद्धति है जिसमें केवल दो अंकों, 0 और 1, का उपयोग किया जाता है। यह एक स्थानिक संख्या पद्धति है, जिसमें प्रत्येक अंक एक विशिष्ट मान रखता है जो उसके स्थान पर निर्भर करता है।
द्विआधारी संख्या पद्धति में, प्रत्येक अंक का एक विशिष्ट मान होता है जो उसके स्थान पर निर्भर करता है। सबसे दाहिने अंक को इकाई स्थान कहा जाता है, उसके बगल वाले अंक को दहाई स्थान कहा जाता है, और इसी तरह। उदाहरण के लिए, संख्या 101101 में, 1 इकाई स्थान पर, 0 दहाई स्थान पर, 1 सैकड़ा स्थान पर, और इसी तरह है।
द्विआधारी संख्या पद्धति के कुछ नियम निम्नलिखित हैं:-
● शून्य को दाईं ओर से शुरू करके लिखा जाता है।
● एक को दाईं ओर से बायीं ओर लिखा जाता है।
● एक ही स्थान पर दो या दो से अधिक अंक नहीं लिखे जा सकते हैं।
● यदि किसी स्थान पर अंक नहीं है, तो उस स्थान पर शून्य लिखा जाता है।
द्विआधारी संख्या पद्धति के कुछ लाभ निम्नलिखित हैं:-
● यह एक सरल और समझने में आसान संख्या पद्धति है।
● यह एक शक्तिशाली संख्या पद्धति है जो गणना और विश्लेषण के लिए उपयोग की जा सकती है।
● यह कंप्यूटरों में डेटा को संग्रहीत और संसाधित करने के लिए उपयोग की जाती है।
द्विआधारी संख्या पद्धति का उपयोग कंप्यूटरों में डेटा को संग्रहीत और संसाधित करने के लिए किया जाता है। कंप्यूटर केवल दो राज्यों को समझते हैं, जिसे "ऑन" और "ऑफ" कहा जाता है। द्विआधारी संख्या पद्धति इन दो राज्यों को क्रमशः 1 और 0 के रूप में दर्शाती है।
द्विआधारी संख्या पद्धति के कुछ अनुप्रयोग निम्नलिखित हैं:-
● कंप्यूटर विज्ञान
● इलेक्ट्रॉनिक्स
● संचार प्रौद्योगिकी
● इंजीनियरिंग
● गणित
द्विआधारी संख्या पद्धति एक महत्वपूर्ण संख्या पद्धति है जिसका उपयोग कंप्यूटरों और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में किया जाता है। यह एक सरल और समझने में आसान संख्या पद्धति है जो गणना और विश्लेषण के लिए शक्तिशाली है।
यहां द्विआधारी संख्या पद्धति के कुछ उदाहरण दिए गए हैं:-
● 1: एक
● 10: दो
● 11: तीन
● 100: चार
● 101: पांच
● 110: छह
● 111: सात
● 1000: आठ
● 1001: नौ
द्विआधारी संख्या पद्धति को दशमलव संख्या पद्धति में बदलने के लिए, हम निम्नलिखित नियम का उपयोग कर सकते हैं:-
द्विआधारी संख्या x 2^(स्थान) = दशमलव संख्या
उदाहरण के लिए, संख्या 101101 को दशमलव संख्या में बदलने के लिए, हम निम्नलिखित गणना कर सकते हैं:-
1 x 2^5 + 0 x 2^4 + 1 x 2^3 + 1 x 2^2 + 0 x 2^1 + 1 x 2^0 = 37
इसलिए, द्विआधारी संख्या 101101 का दशमलव मान 37 है।
द्विआधारी संख्या पद्धति को दशमलव संख्या पद्धति में बदलने के लिए एक अन्य तरीका है कि हम द्विआधारी संख्या को बाइनरी-दशमलव परिवर्तक का उपयोग करके दशमलव संख्या में परिवर्तित करें।
अष्टक संख्या पद्धति (Octal Number System) एक ऐसी संख्या पद्धति है जिसमें केवल आठ अंकों, 0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, और 7, का उपयोग किया जाता है। यह एक स्थानिक संख्या पद्धति है, जिसमें प्रत्येक अंक एक विशिष्ट मान रखता है जो उसके स्थान पर निर्भर करता है।
अष्टक संख्या पद्धति में, प्रत्येक अंक का एक विशिष्ट मान होता है जो उसके स्थान पर निर्भर करता है। सबसे दाहिने अंक को इकाई स्थान कहा जाता है, उसके बगल वाले अंक को दहाई स्थान कहा जाता है, और इसी तरह। उदाहरण के लिए, संख्या 123 में, 1 इकाई स्थान पर, 2 दहाई स्थान पर, और 3 सैकड़ा स्थान पर है।
अष्टक संख्या पद्धति के कुछ नियम निम्नलिखित हैं:-
● शून्य को दाईं ओर से शुरू करके लिखा जाता है।
● एक से लेकर सात तक के अंकों को दाईं ओर से बायीं ओर लिखा जाता है।
● एक ही स्थान पर दो या दो से अधिक अंक नहीं लिखे जा सकते हैं।
● यदि किसी स्थान पर अंक नहीं है, तो उस स्थान पर शून्य लिखा जाता है।
अष्टक संख्या पद्धति के कुछ लाभ निम्नलिखित हैं:-
● यह एक सरल और समझने में आसान संख्या पद्धति है।
● यह एक शक्तिशाली संख्या पद्धति है जो गणना और विश्लेषण के लिए उपयोग की जा सकती है।
● यह कंप्यूटरों में डेटा को संग्रहीत और संसाधित करने के लिए उपयोग की जाती है।
अष्टक संख्या पद्धति का उपयोग कंप्यूटरों में डेटा को संग्रहीत और संसाधित करने के लिए किया जाता है। कंप्यूटर केवल दो राज्यों को समझते हैं, जिसे "ऑन" और "ऑफ" कहा जाता है। द्विआधारी संख्या पद्धति इन दो राज्यों को क्रमशः 1 और 0 के रूप में दर्शाती है। अष्टक संख्या पद्धति द्विआधारी संख्या पद्धति को एक अधिक सुविधाजनक रूप प्रदान करती है।
अष्टक संख्या पद्धति के कुछ अनुप्रयोग निम्नलिखित हैं:-
● कंप्यूटर विज्ञान
● इलेक्ट्रॉनिक्स
● संचार प्रौद्योगिकी
● इंजीनियरिंग
● गणित
अष्टक संख्या पद्धति एक महत्वपूर्ण संख्या पद्धति है जिसका उपयोग कंप्यूटरों और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में किया जाता है। यह एक सरल और समझने में आसान संख्या पद्धति है जो गणना और विश्लेषण के लिए शक्तिशाली है।
यहां अष्टक संख्या पद्धति के कुछ उदाहरण दिए गए हैं:-
● 0: शून्य
● 1: एक
● 2: दो
● 3: तीन
● 4: चार
● 5: पांच
● 6: छह
● 7: सात
● 10: आठ
● 11: नौ
अष्टक संख्या पद्धति को दशमलव संख्या पद्धति में बदलने के लिए, हम निम्नलिखित नियम का उपयोग कर सकते हैं:-
अष्टक संख्या x 8^(स्थान) = दशमलव संख्या
उदाहरण के लिए, संख्या 123 को दशमलव संख्या में बदलने के लिए, हम निम्नलिखित गणना कर सकते हैं:
1 x 8^2 + 2 x 8^1 + 3 x 8^0 = 81
इसलिए, अष्टक संख्या 123 का दशमलव मान 81 है।
अष्टक संख्या पद्धति को दशमलव संख्या पद्धति में बदलने के लिए एक अन्य तरीका है कि हम अष्टक संख्या को बाइनरी-दशमलव परिवर्तक का उपयोग करके दशमलव संख्या में परिवर्तित करें।
षोडशवली संख्या पद्धति (Hexadecimal Number System), जिसे हेक्साडेसिमल भी कहा जाता है, एक स्थितीय अंक प्रणाली है जिसके आधारांक (बेस) का मान 16 होता है। इसमें सोलह अलग-अलग प्रतीकों का इस्तेमाल होता है जिसमें 0 से 9 तक के प्रतीक शून्य से नौ तक के मानों को प्रदर्शित करते हैं और A, B, C, D, E, F (या वैकल्पिक रूप से a से f) तक के प्रतीक दस से पंद्रह तक के मानों को प्रदर्शित करते हैं।
हेक्साडेसिमल संख्या प्रणाली का इस्तेमाल कई क्षेत्रों में किया जाता है, जिसमें कंप्यूटर विज्ञान, इलेक्ट्रॉनिक्स, और रसायन विज्ञान शामिल हैं। कंप्यूटर विज्ञान में, हेक्साडेसिमल संख्या प्रणाली का इस्तेमाल बाइनरी संख्या प्रणाली को व्यक्त करने के लिए किया जाता है, जो कंप्यूटरों द्वारा उपयोग की जाने वाली संख्या प्रणाली है।
हेक्साडेसिमल संख्या प्रणाली को समझने के लिए, हमें पहले दशमलव संख्या प्रणाली को समझना होगा। दशमलव संख्या प्रणाली में, दस अलग-अलग प्रतीकों का इस्तेमाल होता है (0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, और 9) जो 0 से 9 तक के मानों को प्रदर्शित करते हैं।
हेक्साडेसिमल संख्या प्रणाली में, 16 अलग-अलग प्रतीकों का इस्तेमाल होता है। 0 से 9 तक के प्रतीक दशमलव संख्या प्रणाली में समान मान रखते हैं। A, B, C, D, E, और F प्रतीक दस से पंद्रह तक के मानों को प्रदर्शित करते हैं।
हेक्साडेसिमल संख्या प्रणाली में, प्रत्येक अंक 16 की घात को प्रदर्शित करता है। उदाहरण के लिए, हेक्साडेसिमल संख्या 2AF3 का मान निम्नलिखित है:-
2AF3 = 2 x 16^3 + 10 x 16^2 + 15 x 16^1 + 3 x 16^0
= 4096 + 2560 + 240 + 3
= 6895
हेक्साडेसिमल संख्या प्रणाली का इस्तेमाल बाइनरी संख्या प्रणाली को व्यक्त करने के लिए किया जा सकता है। बाइनरी संख्या प्रणाली में, केवल दो प्रतीक होते हैं: 0 और 1। बाइनरी संख्या प्रणाली को हेक्साडेसिमल संख्या प्रणाली में परिवर्तित करने के लिए, हम निम्नलिखित नियमों का पालन कर सकते हैं:-
● प्रत्येक 4-बिट बाइनरी संख्या को एक हेक्साडेसिमल अंक में परिवर्तित करें।
● यदि बाइनरी संख्या 4 से अधिक बिट्स लंबी है, तो इसे दो 4-बिट बाइनरी संख्याओं में विभाजित करें।
उदाहरण के लिए, बाइनरी संख्या 1010101011011110 को हेक्साडेसिमल संख्या में परिवर्तित करने के लिए, हम निम्नलिखित चरण निष्पादित कर सकते हैं:-
1. बाइनरी संख्या को दो 4-बिट बाइनरी संख्याओं में विभाजित करें:-
1010101011011110 = 10101010 | 11011110
2. प्रत्येक 4-बिट बाइनरी संख्या को एक हेक्साडेसिमल अंक में परिवर्तित करें:-
10101010 = 10
11011110 = FE
3. दो हेक्साडेसिमल अंकों को एक साथ जोड़ें:-
10 FE = 3FE
इसलिए, बाइनरी संख्या 1010101011011110 का हेक्साडेसिमल मान 3FE है।
हेक्साडेसिमल संख्या प्रणाली एक शक्तिशाली उपकरण है जिसका इस्तेमाल कई क्षेत्रों में किया जाता है। यह बाइनरी संख्या प्रणाली को व्यक्त करने के लिए एक सुविधाजनक तरीका प्रदान करता है, और यह बड़ी संख्याओं को व्यक्त करने के लिए भी उपयोगी है।
यह केवल 16 अंकों, 0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, A, B, C, D, E, और F, का उपयोग करती है। यह कंप्यूटरों में डेटा को संग्रहीत और संसाधित करने के लिए भी उपयोग की जाती है।
संख्याओं के प्रकार
1. प्राकृतिक संख्याएँ (Natural Numbers)
गणित में, एक धनपूर्णांक वह संख्या है जो 0 से बड़ी हो। धनपूर्णांकों को प्राकृतिक संख्याओं के रूप में भी जाना जाता है। उदाहरण के लिए, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, आदि धनपूर्णांक हैं।
2. पूर्ण संख्याएँ (Whole Numbers)
गणित में, पूर्णसंख्याएं संख्याओं का वह समूह हैं जो ऋणात्मक पूर्णांक, शून्य और धनात्मक पूर्णांकों से मिलकर बनता है। ऋणात्मक पूर्णांक उन संख्याओं को दर्शाते हैं जो 0 से कम हैं, जैसे कि -1, -2, -3, आदि। शून्य वह संख्या है जो 0 से कम या 0 से अधिक नहीं है। धनात्मक पूर्णांक उन संख्याओं को दर्शाते हैं जो 0 से अधिक हैं, जैसे कि 1, 2, 3, आदि।
3. ऋण पूर्णांक (Negative Integer)
गणित में, एक ऋण पूर्णांक वह संख्या है जो 0 से कम होती है। ऋणात्मक पूर्णांकों को ऋण चिह्न (-) के साथ लिखा जाता है। उदाहरण के लिए, -1, -2, -3, आदि ऋणात्मक पूर्णांक हैं।
4. पूर्णांक (Integers)
गणित में, पूर्णांक संख्याओं का वह समूह है जो ऋणात्मक पूर्णांक, शून्य और धनात्मक पूर्णांकों से मिलकर बनता है। ऋणात्मक पूर्णांक उन संख्याओं को दर्शाते हैं जो 0 से कम हैं, जैसे कि -1, -2, -3, आदि। शून्य वह संख्या है जो 0 से कम या 0 से अधिक नहीं है। धनात्मक पूर्णांक उन संख्याओं को दर्शाते हैं जो 0 से अधिक हैं, जैसे कि 1, 2, 3, आदि।
5. सम संख्याएँ (Even Numbers)
सम संख्या गणित में एक महत्वपूर्ण और मौलिक विषय है। सम संख्या, जिन्हें पूर्णांक भी कहा जाता है, प्राकृतिक संख्या होती है जो 0 के बाद आने वाले सभी पूर्णांकों को कवर करती है। सम संख्याएँ वह आकड़े होते हैं जो बिना शेष बचे हुए होते हैं, और इन्हें पर्टिकुलर फॉर्मूला के साथ निर्धारित किया जा सकता है, जैसे कि 2n या 2n + 1, जहां 'n' एक पूर्णांक होता है।
6. विषम संख्याएँ (Odd Numbers)
गणित में, विषम संख्याएँ वे संख्याएँ हैं जिनका इकाई अंक 1, 3, 5, 7, या 9 होता है। उदाहरण के लिए, 1, 3, 5, 7, 9, 11, 13, 15, 17, 19, आदि विषम संख्याएँ हैं।
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7. भाज्य संख्याएँ (Divisible Numbers)
गणित में, भाज्य संख्याएँ वे संख्याएँ हैं जिन्हें एक या अधिक संख्याओं से विभाजित किया जा सकता है, जिससे पूर्णांक भागफल प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए, 6 को 2, 3, या 6 से विभाजित किया जा सकता है, जिससे पूर्णांक भागफल प्राप्त होता है। इसलिए, 6 एक भाज्य संख्या है।
8. अभाज्य संख्याएँ (Prime Numbers)
गणित में, अभाज्य संख्याएँ वे संख्याएँ हैं जिन्हें केवल 1 और स्वयं से ही विभाजित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, 2, 3, 5, 7, 11, 13, 17, 19, आदि अभाज्य संख्याएँ हैं।
9. सहअभाज्य संख्याएँ (Coprime Numbers)
गणित में, सहअभाज्य संख्याएँ वे संख्याएँ हैं जिनके सार्वत्रिक गुणनखंड केवल 1 होता है। उदाहरण के लिए, 2 और 3 सहअभाज्य संख्याएँ हैं क्योंकि उनका केवल एक उभयनिष्ठ गुणनखंड है, जो 1 है।
10. परिमेय संख्याएँ (Rational Numbers)
गणित में, परिमेय संख्याएँ वे संख्याएँ हैं जिन्हें दो पूर्णांकों के अनुपात के रूप में व्यक्त किया जा सकता है, जहाँ भाजक शून्य नहीं है। उदाहरण के लिए, 1/2, 2/3, 3/4, आदि परिमेय संख्याएँ हैं।
11. अपरिमेय संख्याएँ (Irrtional Number)
गणित में, अपरिमेय संख्याएँ वे संख्याएँ हैं जिन्हें दो पूर्णांकों के अनुपात के रूप में व्यक्त नहीं किया जा सकता है, जहाँ भाजक शून्य नहीं है। उदाहरण के लिए, π, √2, और e अपरिमेय संख्याएँ हैं।
12. वास्तविक संख्याएँ (Real Numbers)
गणित में, वास्तविक संख्याएँ वे संख्याएँ हैं जो परिमेय और अपरिमेय संख्याओं के समूह को मिलाकर बनती हैं। वास्तविक संख्याओं को एक रेखा पर दर्शाया जा सकता है, जिसे संख्या रेखा कहा जाता है।